Friday, February 8, 2008

BHAGVADAGEETA ON MANTRA "OM" ॐ




A devotee wanted references in Bhagvadageeta regarding
ॐ OM

Reply sent to him.

# प्रणवः सर्ववेदेषु ु ॥७- ८॥

सभी वेदों में वर्णित
हूँ, ।

(I am) The sacred syllable OM in all the Vedas,

# सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च ।
मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम् ॥८- १२॥
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ॥८- १३॥

अपने सभी द्वारों (अर्थात इन्द्रियों) को संयमशील कर, मन और हृदय को निरोद्ध कर (विषयों से निकाल कर), प्राणों को अपने मश्तिष्क में स्थित कर, इस प्रकार योग को धारण करते हुऐ ।से अक्षर ब्रह्म को संबोधित करते हुऐ, और मेरा अनुस्मरन करते हुऐ, जो अपनी देह को त्यजता है, वह परम गति को प्राप्त करता है ।

Controlling all the (nine) doors of the body,
The abode of consciousness;
Focusing the mind on the heart and Prana
In the cerebrum, and engaged in yogic practice;

One who leaves the body
While meditating on Brahman and uttering OM,
The sacred monosyllable sound of Brahman,
Attains the Supreme goal.


# वेद्यं पवित्रमोंकार ऋक्साम यजुरेव च ॥९- १७॥

मैं ही वेद्यं (जिसे जानना चाहिये) हूँ, पवित्र हूँ, और ऋग, साम, और यजुर भी मैं ही हूँ ।

The sacred syllable OM,
And also the Rig, the Yajur, and the Sama Vedas.


# महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् ॥१०- २५॥

महर्षीयों में मैं भृगु हूँ, शब्दों में मैं एक ही अक्षर हूँ ।

I am Bhrigu among the great sages;
I am the monosyllable OM among the words;


# ॐतत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः ॥१७- २३॥

तत सत् - इस प्रकार ब्रह्म का तीन प्रकार का निर्देश कहा गया है ।

"OM TAT SAT" is said to be

The threefold name of Brahman.


# तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपःक्रियाः ।
प्रवर्तन्ते विधानोक्ताः सततं ब्रह्मवादिनाम् ॥१७- २४॥

इसलिये ब्रह्मवादि शास्त्रों में बताई विधि द्वारा सदा के उच्चारण द्वारा यज्ञ, दान और तप क्रियायें आरम्भ करते हैं ।

Therefore, acts of sacrifice, charity,
And austerity prescribed in the scriptures
Are always commenced by uttering "OM"
By the knowers of Brahman.


HARI OM

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