
AN HINDI POEM OF MINE DEDICATED TO MY BELOVED LORD KRISHNA
कैसे तुम्हें पा सकूँगा मैं
इतने कठोर न बनो मेरे प्यारे कान्हा
पात्रता के नियम पूरे कर न सकूँगा मैं
कितने जन्मों से भटक रहा हूँ
मद माया से और लड़ न सकूँगा मैं
वो सब तेरी शक्तियां तेरे आधीन कार्यरत
उनसे और अब और भिड़ न सकूँगा मैं
कमज़ोर हूँ मैं काम क्रोध लोभ मोह की
जेल से छुटकारा पा न सकूँगा मैं
पाठ पूजा जपतप योग ध्यान करे न
यह मन इसे तो समझा न सकूँगा मैं
न इसको ग्यान न रूचि हठी है यह
सही मार्ग पर इसे चला न सकूँगा मैं
सही पात्रता की शर्त रही तो मेरे कानहा
कभी भी तेरा प्यार पा न सकूँगा मैं
मुझ जैसो का तो इक ही सहारा मेरे प्रभु
तुझ स्वयमं की कृपा से तुम्हें पा सकूँगा मैं
मैं सही मार्ग पर चलुँ ऎसी अक्ल तो आपकी
कृपा बिना और कहाँ से पा सकूँगा मैं
अब आप बताऒ मेरे जैसो ढीठों और पापियों
की विशेष योजना, कैसे तुम्हें पा सकूँगा मैं
रहम कर दया कर मिहरबानी कर मेरे दिलबर
तुम्हारी कृपा से ही केवल तुम्हें पा सकूँगा मैं
राह दिखा शक्ति दे योगक्षेम वहन कर
साथ रह पात्रता दिला तभी तुझे पा सकूँगा मैं
मेरा लक्श्य आप आसरा आप मेरे प्यारे कान्हा
मेरा करो बेड़ा पार तभी किनारा पा सकूँगा मैं
हे कृष्ण गोबिन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण
वासुदेवा - लो अब तो तुम्हें पा सकूँगा मै
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