Monday, January 26, 2009

कान्हा जी







कान्हा जी हमे अपनी पायल नही तो
पायल का एक घुँघरू ही बना लो
और उसे अपने चरणकमलों से लगा लो

कान्हा जी हमे अपने कंगन नही तो
कंगन में जड़ा हुआ एक पत्थर ही बना दो
और उसे अपनी प्यारी कलाईयों में सजा लो

कान्हा जी हमे अपनी मुरली नही तो
अपनी मुरली की कोई धुन ही बना लो
और उसे अपने अधरों से इक बार तो बजा लो

कान्हा जी हमे अपना मित्र
नही तो दासो का दास ही बना लो
यूं कुछ कृपा दृष्टि हम पर बर्षा दो

कान्हा जी और कुछ नही तो अपने
चरणों की धूल ही बना लो
वो चरणधूल फिर ब्रज में उड़ा दो

सच कहूँ मेरे कान्हा जी देखना फिर
चरणों की धूलकण बन कैसे इतराऊँ मै

....शरणागत

4 comments:

ज्योति सिंह said...

kanha ke upar sundar rachana likhi hai .badhai ho .aapka yah blog krishamaya hai .

Unknown said...

bahut sunder!!!!!!!

akash jain said...

Ati sundar....please keep updating.

Yukta Agarwal said...

natkhat kanha,bahut hi sundar dikhte hai.......