A poem in Hindi dedicated by a devotee to Lord Krishna
कान्हा जी क्यों हुए निष्ठुर
ओ कान्हा जी क्यों हुए निष्ठुर
कि मेरी अनुनय विनय न सुनते
माना कि मैं शरणागत आपने कहा
सुधि लोगे ही कभी यूं दया दृष्टि धरते
पर कान्हा जी यह तो सोचो
कुछ तो समझो कुछ तो करो महसूस
सब्र का प्याला भर चुका है
का कृपा जब प्याला जायेगा टूट
प्रभु जी इक बार दर्श दिखा दो
इससे पहले कि दृष्टि हो जाये क्षीण
कान्हा जी इक बार सुना दो
मुरली की तान उसका मधुर संगीत
फिर क्या पता कान हो अशक्त
सुन न पाए मुरली का सन्देश
भगवदगीता का ज्ञान जिसको सुन
तृप्त हो मन कछु न रहे शेष
कान्हा जी इक बार आ जाओ
मैं आसन सजाऊँ आप को बिठाऊँ
आपकी आरती उतारूं पल पल निहारूं
आपके चरणों पर सिरधर रोऊँ और हसूँ
कान्हा जी प्लीज़ इससे पहले कि तन
कमजोर पड़े खड़ा ना हो पाऊँ मैं
हाथों में वो बल न रहे के मनभावन
सेवा भी न कर पाऊँ मैं
सुन लो बिनती मेरी अब तो मैं
बोल रहा हूँ स्वीकार करले
इससे पहले दर्श दिखा दो प्रभु कि
गला रूंध जाये आवाज़ न निकले
कान्हा जी पधारो और ना तरसाओ
शरणागत की राखो लाज
किसकी न सुनी आप ने आज तक
क्यों होगये इतने निष्ठुर आज
....... शरणागत
Wednesday, December 10, 2008
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2 comments:
Hari Om!
Kanhaji will come running
And jump into your lap
So sweet and touching
Your kavitha and aalap!
With Pranams,
Vanaja Ravi Nair
hmmm...
It will happen soon
till then keep chanting lovely names of God and spreading all d happiness around
hare krishna!!
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